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चित्रगुप्त कथा

चित्रगुप्त पूजा या दावात पूजा की सरलतम विधि एवं कथा

हिन्दू धर्म मे चित्रगुप्त देव का नाम बड़े आदर सम्मान से लिया जाता है । यह कहा जाता है कि व्यक्ति अपने अंदर उतपन्न होते  हर विचार को चित्र के रूप में सँजोता है । चित्रगुप्त देव को यमराज का सहायक बताया जाता है, इनके पास व्यक्ति के हर कर्म का लेखा-जोखा होता है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में चित्रगुप्तजी की पूजा का विशेष महत्व है। चित्रगुप्त कायस्थों के आराध्य देव हैं।

चित्रगुप्त देव का परिचय

चित्रगुप्त देव को कोई परिचय की जरूरत नहीं । हिन्दू ग्रंथ के मुताबिक चित्रगुप्त देव को महाशक्तिमान राजा भी कहा जाता है । ब्रह्मदेव के 14 मानस पुत्रों में से एक चित्रगुप्त भगवान की दो शादियां हुई एक सूर्यदक्षिणा/नंदनी जो ब्राह्मण कन्या थी, इनसे ४ पुत्र हुए जो भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती/शोभावति ऋषि कन्या थी, इनसे ८ पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।

चित्रगुप्त पूजा विधि

पूजा आराधना यह वह विधि है जिसमे व्यक्ति भगवान से सीधा संवाद करता है । जिस प्रकार आप जब भी किसी अन्य व्यक्ति से भेंट करने जाते हैं तो स्वयं को साफ सुथरा करके जाते हैं ठीक उसी प्रकार पूजा यानी भगवान से भेंट करना तो इसके लिए स्वयं को साफ सुथरा करें और घर के मंदिर में आएं और भगवान चित्रगुप्त की मूरत के समक्ष बैठ जाएं । घर के मंदिर की सफाई कर एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान चित्रगुप्त का फोटो स्थापित करें यदि चित्र उपलब्ध न हो तो कलश को प्रतीक मानकर चित्रगुप्त भगवान की पूजा कर सकते हैं। पूजा की थाल सजाएं। थाल में रोल,अक्षत, फूल, हल्दी, चंदन, गुड़, दही, इत्र, वस्त्र, कलावा, गाय के गोबर का कंडा, हवन सामग्री, कपूर, मिष्ठान इत्यादि पूजन सामग्री रखें। गंगाजल छिड़ककर स्थान पवित्र कर, दीपक और धूप जलाएं। चित्रगुप्तजी को रोली और अक्षत से टीका करें और भोग लगाएं। फिर सबसे पहले गणेश वंदना करें। अब परिवार का मुखिया एक सादे (प्लेन) पेपर पर ‘ ओम चित्रगुप्ताय नमः’ लिखे और फिर बाकी बचे खाली पेपर पर राम राम राम राम राम राम लिखकर उसे भर दें। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य यही कार्य करें। इसके बाद एक अन्य प्लेन पेपर पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। इसके नीचे एक तरफ अपना नाम, पता और दिनांक लिखें। कागज के दूसरी तरफ अपनी आय-व्यय का पूरा विवरण दें। अपनी इच्छा भगवान से बताते हुए अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु उनसे निवेदन करें। इस निवेदन के नीचे अपना नाम लिखें।

भगवान चित्रगुप्त जी की कथा

युधिष्ठिर जी ने जब भीष्म जी से कहा कि उन्होंने धर्मशास्त्र को पूर्ण रूप से सुना परन्तु अब वह इसका फल और पुण्य सुनना चाहते हैं । इसपर भीष्म जी एक कथा सुनाते हैं । इस कथा से सभी पापों का नष्ट हो जाता है । सतयुग में नारायण भगवान्‌ से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे चार मुँह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, जिनसे वेदवेत्ता भगवान्‌ ने चारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत्‌ को शीघ्र रचो। हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्या उत्पन्न हुई, जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चंद्रमा को दीं। कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियाँ पैदा हुईं। धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूँ कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूँगा कि जिससे कर्त्ताओं को फल मिलेगा, परन्तु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनन्त हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनन्त हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूँगा, इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो। धर्मराज की इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने एक हजार वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की सी गर्दन, गूढ़ शिर, चंद्रमा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उसे पूछ कि तू कौन है? तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता, किन्तु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूँ, इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूँ? ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हँसकर कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है, इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने, इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है। ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है। इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान हो गए। फिर वह पुरुष (चित्रगुप्त) कोटि नगर को जाकर चण्ड-प्रचण्ड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गया। उपवास कर उसने भक्ति के साथ चण्डिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- हे जगत्‌ को धारण करने वाली! तुमको नमस्कार है, महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकान्तरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। सन्ध्या और रात्रि रूप भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती तुमको नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कान्ति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चण्डी देवी तुमको नमस्कार है।

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