इन्फो

कायस्थों के चार-धाम

भारतवर्ष में भगवान चित्रगुप्त जी के अनेक मंदिर हैं, परन्तु इनमें से पौराणिक एवं एतिहासिक महत्व के प्रथम चार मंदिर, कायस्थों के चार धामों के समतुल्य महत्व रखते हैं। ये महत्वपूर्ण और प्रसिद्व तो हैं ही, प्रश्न है हमारी आस्था और विश्वास का। ये मंदिर निम्न हैं :-

1 . मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के अंकपात में सिथत शिला मंदिर :- पौराणिक आख्यानों के अनुसार मान्यता है कि कायस्थों के आदि पूर्वज, श्री चित्रगुप्त जी का प्रादुर्भाव, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को, पौराणिक अवनितका अथवा उज्जयिनी के अंक-पात क्षेत्र में हुआ था। यहीं पर उन्होंने देव गुरु बृहस्पति तथा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से सभी शिक्षायें प्राप्त करके, धर्मराज के सहायक का पदभार ग्रहण किया था। पदमपुराण के सृषिट खंड में आख्यान है कि सृषिट की रचना के समय उत्पन्न तमाम जीवधारियों के कर्मानुसार फल देने का दायित्व, विवस्वान पुत्र यम को, जिन्हें धर्मराज की उपाधि से भी विभूषित किया गया था, को दिया गया था। उज्जैन, जहा सिंहस्थ सूर्य के कुम्भ के आयोजन के लिये जाना जाता है, वहीं शिव के चौदह ज्योतिर्लिगों में से एक महाकालेश्वर (महाकाल) के पावन मंदिर के लिये, हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान भी रखता है। उत्तर वैदिक और पौराणिक इतिहास में दक्षिणा के पथ पर सिथत होने के कारण उज्जैन एक प्राचीन व्यापारिक केन्द्र के रुप में भी प्रसिद्व था। क्षिप्रा नदी के तट पर सिथत, अवनितका अथवा उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) भारतीय पुराणों में एक पवित्र मोक्षदाता तीर्थ बताया गया है और अंकपात क्षेत्र, जहा चित्रगुप्त जी ने तपस्या करके सर्वज्ञता की थी, उज्जैन नगर से लगभग 12 किमी. उत्तर दिशा में सिथत है।

सन 1985 र्इ. में क्षिप्रा नदी के किनारे, इसी अंकपात के वन क्षेत्र में एक चौकोर शिला स्थापित थी जिसके एक ओर संभवत: धर्मराजजी और दूसरी ओर श्री चित्रगुप्त जी के चित्र उकेरे हुए थे।

डा. रतन चन्द्र जी वर्मा की प्रेरणा से उज्जैन निवासी चित्रांश बंधुओं ने, जिनमें श्री कृष्ण मंगलसिंह जी कुलश्रेष्ठ अग्रणी थे, ने ‘चित्रगुप्त शिला’ पर एक मंदिर का निर्माण कराया था, जो अब ”श्री चित्रगुप्त शिला मंदिर” कहा जाता है । बाद में इस मंदिर के विस्तार और विकास के लिये एक ट्रस्ट की स्थापना की गर्इ। इसके संस्थापक प्रबंध-न्यासी थे श्री कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ, एडवोकेट। इस ट्रस्ट की देख-रेख में एक विशाल मंदिर काम्प्लेक्स, धीरे-धीरे आकार ग्रहण कर रहा है। अब यहा कायस्थों के आयोजन होते रहते हैं।

2 . श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर अयोध्या जिला फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) :- ”श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर” वर्तमान में, सरयू नदी के दक्षिण, नयाघाट से फैजाबाद, राजमार्ग पर सिथत तुलसी उधान से लगभग 500 मीटर पूरब दिशा में, डेरा बीबी मोहल्ले में, बेतिया राज्य के मंदिर के निकट है। वैसे नयाघाट से मंदिर की सीधी दूरी लगभग एक किमी. होगी। पौराणिक गाथाओं के अनुसार, स्वंय भगवान विष्णु ने इस मंदिर की स्थापना की थी और धर्मराज जी को दिये गये वरदान के फलस्वरुप ही धर्मराज जी के साथ इनका नाम जोड़ कर इस मंदिर को ‘श्री धर्म-हरि मंदिर’ का नाम दिया है। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है। किवदंति है कि विवाह के बाद जनकपुर से वापिस आने पर श्रीराम-सीता ने सर्वप्रथम धर्महरि जी के ही दर्शन किये थे। धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। अयोध्या के इतिहास में उल्लेख है कि सरयू के जल प्रलय से अयोध्या नगरी पूर्णतया नष्ट हो गर्इ थी और विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य ने जब अयोध्या नगरी की पुनस्र्थापना की तो सर्वप्रथम श्री धर्म हरि जी के मंदिर की स्थापना करार्इ थी।

मंदिर की व्यवस्था के संचालन हेतु, सुल्तानपुर निवासी मुंशी बिन्देश्वरी प्रसाद जी ने, अठारह बीघे भूमि दान की थी, परन्तु ब्राहमण पुजारी ने उस जमीन को अपने नाम करवाकर, खुर्द-बुर्द कर दिया था। सन 1882 र्इ. में एक्सट्रा असिस्टेन्ट कमिश्नर श्री महेश प्रसाद जी के प्रयासों से ”कायस्थ धर्म सभा अयोध्या” की स्थापना हुर्इ थी और फैजाबाद के श्री शिवराज सिंह जी वकील सभा के मंत्री बने थे। अत: पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर कायस्थों के चारों धामों में दूसरे स्थान का महत्व रखता है।

3 . तमिलनाडू के काचीपुरम (पौराणिक-काचीपुरी) का श्री चित्रगुप्त स्वामी मंदिर :- दक्षिण भारत के तमिलग्रन्थ करणीगर पुराणम के साथ ही ”विष्णु धर्मोत्तर पुराण” में भी श्री चित्रगुप्त स्वामी के नाम से ज्ञात श्री चित्रगुप्त वशंज माने गये ”करुणीगर कायस्थों” का उल्लेख मिलता है। इन्हीं श्री चित्रगुप्त स्वामी का एक भव्य मंदिर, मंदिरों की नगरी काचीपुरम में नगर के मध्य में सिथत है। दक्षिण भारत के तमिल क्षेत्र में इन करणीगरों की मान्यता वैसी ही है जैसी उत्तर भारत के बारह चित्रगुप्तवंशी कायस्थों की। परन्तु, ”करुणीगर पुराणम” के अनुसार श्री चित्रगुप्त स्वामी एक नीला देवी से भगवान सूर्य के पुत्र हैं। श्री चित्रगुप्त स्वामी का मंदिर, काचीपुरम नगर के मध्य में, श्री रामकृष्ण आश्रम से लगभग एक फलाग की दूरी पर एक ऊचे चबूतरे पर सिथत है। यह चबूतरा इतना ऊचा है कि कोर्इ भी दर्शनार्थी नीचे खड़े होकर, मंदिर के गर्भगृह में स्थापित मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता, उसे चबूतरे पर ऊपर चढ़ने के बाद ही श्री चित्रगुप्त स्वामी के दर्शन प्राप्त हो सकते हैं। मंदिर का स्थापत्य बहुत सुन्दर, भव्य और गरिमामय है। मंदिर के गर्भ गृह में, हाथों में कलम दवात लिये हुये भगवान चित्रगुप्त स्वामी के साथ ही देवी कार्नकी की कास्य प्रतिमा स्थापित है।

5 . बिहार के पटना सिटी के दीवान मोहल्ले में, नौजरघाट सिथत ”श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर पटना” मगघ की प्राचीन राजधानी पाटलिपुत्र तथा बिहार राज्य के आधुनिक मुख्यालय पटना में, पतित पावनी गंगा के तट पर, दीवान मोहल्ला के नौजरघाट पर सिथत इस ऐतिहासिक चित्रगुप्त मंदिर को पटना के कायस्थों ने श्री चित्रगुप्त आदि की संज्ञा क्यों दी ? यह स्पष्ट नहीं किया गया है। बताया जाता है कि सर्वप्रथम इस मंदिर का निर्माण, नंद वंश के अंतिम मगध सम्राट धनानन्द ने इतिहास प्रसिद्व महामंत्री, चित्रगुप्तवंशी ”राक्षस” ने र्इसा पूर्व कराया था। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का पुर्ननिर्माण, मुगल सम्राट के नौरत्नों में से एक और वर्तमान जिला औरंगाबाद के मूल निवासी और इतिहास प्रसिद्व शेरशाह सूरी के भी मत्री रह चुके, राजा टोडरमल तथा उनके नायब रहे कुवर किशोर बहादुर ने करवाकर, कसौटी पत्थर की भगवान चित्रगुप्तजी की मूर्ति, हिजरी सन 980 तदानुसार र्इसवीं सन 1574 में स्थापित करार्इ थी। र्इसवीं सन 1766 में राजा सिताबराय ने मंदिर के चारों ओर की भूमि, मंदिर के नाम करवाकर चारदीवारी बनवार्इ थी। बाद में राजा सिताबराय के पौत्र, महाराज भूपनारायण सिंहं ने, जयपुर से मंगवाये गये, नक्काशीदार पत्थरों से मंदिर को भव्यता प्रदान की थी। परन्तु देख-रेख के अभाव में, मंदिर जीर्ण-शीर्ण ही नहीं हो गया, वरन मंदिर में स्थापित कसौटी पत्थर की मूर्ति तस्करों द्वारा चुरा ली गर्इ थी। तत्पश्चात संवत 2019, तदानुसार र्इसवीं सन 1962 में, पटना सिटी निवासी, चित्रगुप्तवंशी राजा रामनारायण वंशज राय मथुरा प्रसाद जी ने मंदिर में, स्फटिक पत्थर की मूर्ति स्थापित करवाकर, मंदिर को मंदिर की प्रतिष्ठा दिलार्इ थी। यही मूर्ति 11.11.2007 तक इस मंदिर में शोभायमान थी। इस मंदिर में एक शिव मंदिर भी है। अव्यवस्था के कारण अराजक तत्वों ने उपेक्षित मंदिर परिसर पर अवैध कब्जा करके परिसर को बहुत छोटा कर दिया था।

श्री कमल नयन श्रीवास्तव जी के ही प्रयासों से आज पटना का समृद्व कायस्थ वर्ग, मंदिर की व्यवस्था से जुड़कर अपना सार्थक योगदान कर रहा है। समिति के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण तथा दुरुह कार्य था, दशकों से मंदिर परिसर पर स्थापित अवैध कब्जे को हटाकर लाखों रुपयों के व्यय से, परिसर के परकोटे का निर्माण करवाना। आज इस मंदिर के निर्माण और विस्तार कार्य से, पटना के राजनीतिज्ञ, व्यवसायी, उधमी, डाक्टर, इन्जीनियर तथा सेवा निवृत शासकीय अधिकारी अपने अन्तरमन से जुड़े हुए हैं। यह मंदिर आज पटना के कायस्थों की काशी बन चुका है और धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा है। मंदिर के स्वप्न को आकार देने के प्रयास में डा. नरेन्द्र प्रसाद जी के प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनने तथा पटना के अग्रणी चित्रांशों यथा श्री शिवकुमार सिन्हाजी, अध्यक्ष, चित्रगुप्त समाज, बिहार, प्रसिद्व असिथ सर्जन – पदमश्री डा. गोपाल प्रसाद सिन्हा जी, बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री आर.आर.प्रसाद तथा राजनीतिज्ञ व उधमी श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा आदि के जुड़ने के बाद आर्इ। परिसर को काफी सीमा तक मुक्त कराया जा चुका है। सोने में सुहागा यह है कि राजा टोडरमल द्वारा स्थापित और बाद में चोरी हो गर्इ कसौटी पत्थर की भगवान चित्रगुप्त जी की मूर्ति मिल गर्इ।

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