शख़्सियत

गोपाल दास नीरज

गोपालदास नीरज (जन्म: 4 जनवरी 1925), हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

गोपाल दास नीरज (४ जनवरी १੯२४ -) हिंदी साहित्य के जाने माने कवियों में से हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिला के गाँव पुरावली में हुआ । उनकी काव्य पुस्तकों में दर्द दिया है, आसावरी, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली, गीत-अगीत, कारवां गुजर गया, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ शामिल हैं। गोपाल दास नीरज ने कई प्रसिद्ध फ़िल्मों के गीतों की रचना भी की है।

नीरज के गीत चाहे रेडियो पर सुने या फिर उनके मुख से किसी मंच से, दिल को पुर सुकून देते हैं। आज आप जिस बहुचर्चित गीतकार कवि को जर्जर हालत में देख रहे हैं, किसी समय उनकी माली हालत भी इसी काया की तरह थी।

अपनी गरीबी को उन्होंने कभी किसी मंच से साझा नहीं किया। यह बात मुझे यदि मेरे स्वर्गीय पिता नहीं बतलाते तो दुनिया यह जान ही नहीं पाती कि डॉ. गोपालदास नीरज ने अपना बचपन किन मुश्किल हालातों में गुजारा था।

यह बात कई साल पहले दिल्ली से इंदौर के सफर की है। पिताजी प्रथम श्रेणी के डिब्बे में थे और सामने वाली सीट पर आकर एक व्यक्ति बैठता है। कुछ देर में बातचीत का दौर शुरु होता है। यह व्यक्ति अपना परिचय देता है -मुझे लोग गोपालदास नीरज कहते हैं…पिता रोमांचित हो गए और फौरन अपने झोले में से उनका कविता संग्रह ‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे..’ निकालकर यह बताया कि मैं भी आपका बहुत बड़ा फैन हूं।

नीरज इंदौर में एक कवि सम्मेलन के सिलसिले में आ रहे थे, जो गांधी हॉल में था। सफर में उनसे पिताजी की काफी बातें हुई और तब नीरज ने अपने परिवार के बारे में जो कुछ भी बताया, वह हैरान कर देने वाला था। नीरज ने कहा कि गंगा किनारे हमारा घर हुआ करता था और घर में बेहद गरीबी थी। जो लोग गंगा नदी में 5 पैसे, 10 पैसे फेंकते थे, हम बच्चे गोता लगाकर उन्हें निकालकर इकठ्‍ठा करते थे और इसी जमा पूंजी से घर का चूल्हा जलता था।

शैली

दार्शनिक शैली में वह प्रतीक प्रधान व्यंजना के द्वारा सीधे-सादे ढंग से अपनी बात कहते चलते है। उसकी रचनाएँ संगीत, अलंकार और विशेषणों आदि विहीन सीधी-सादी होती हैं। लोकगीतात्मक शैली में प्राय: फक्कड़पन रहता है, और ऐसी रचनाओं में वह प्राय: ह्रस्व-ध्वनि प्रधान शब्द ही प्रयुक्त करते हैं। उनकी लोकगीत-प्रधान शैली से लिखी गई रचनाओं में माधुर्य भाव की प्रचुरता देखने को मिलती है। चित्रात्मक शैली में लिखी गई रचनाओं में वह शब्दों द्वारा चित्र-निर्माण करने की ही रचनाएँ हैं, जो ओज, तारुण्य और बलिदान का संदेश देने के लिए लिखी गई हैं। ओज लाने के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग नितांत वांछनीय है। ऐसी रचनाओं में ‘नीरज’ ने जीवन के निटकतम प्रतीकों का प्रयोग ही बहुलता से किया है। संस्कृतनिष्ठ शैली वाली रचनाओं में ‘नीरज’ की अनुभूति का आधार प्राचीन भारतीय परंपरा रही है।

लोकप्रियता

‘नीरज’ की लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वह जहाँ हिन्दी के माध्यम से साधारण स्तर के पाठक के मन की गहराई में उतरे हैं वहाँ उन्होंने गम्भीर से गम्भीर अध्येताओं के मन को भी गुदगुदा दिया है। इसीलिए उनकी अनेक कविताओं के अनुवाद गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, रूसी आदि भाषाओं में हुए हैं। यही कारण है कि ‘भदन्त आनन्द कौसल्यायन’ यदि उन्हें हिन्दी का ‘अश्वघोष’ घोषित करते हैं, तो ‘दिनकर’ जी उन्हें हिन्दी की ‘वीणा’ मानते हैं। अन्य भाषा-भाषी यदि उन्हें ‘संत कवि’ की संज्ञा देते हैं, तो कुछ आलोचक उन्हें निराश मृत्युवादी समझते हैं।

प्रमुख कविता संग्रह

हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश के अनुसार नीरज की कालक्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं:

    संघर्ष (1944)

    अन्तर्ध्वनि (1946)

    विभावरी (1948)

    प्राणगीत (1951)

    दर्द दिया है (1956)

    बादर बरस गयो (1957)

    मुक्तकी (1958)

    दो गीत (1958)

    नीरज की पाती (1958)

    गीत भी अगीत भी (1959)

    आसावरी (1963)

    नदी किनारे (1963)

    लहर पुकारे (1963)

    कारवाँ गुजर गया (1964)

    फिर दीप जलेगा (1970)

    तुम्हारे लिये (1972)

    नीरज की गीतिकाएँ (1987)

पुरस्कार एवं सम्मान

नीरज जी को अब तक कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:

    विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार

    पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार

    यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

    पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार

फिल्म फेयर पुरस्कार

नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुररकृत गीत हैं-

    1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली)

    1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)

    1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)

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