शख़्सियत

मन्ना डे

पूरा नाम – प्रबोध चन्द्र डे
उर्फ नाम – मन्ना डे
जन्म – 1 मई 1919, कोलकाता, (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु – 24 अक्टूबर 2013, बंगलौर, भारत (94) साल की आयु में
पेशा – पार्श्व गायक
विवाह – सुलोचना कुमारन (18 दिसम्बर 1953) केरल (भारत)
बच्चें – दो बेटियां
सक्रिय वर्ष – साल 1919 से 2013 तक
सम्मान – भारत सरकार ने साल 1971 में पद्दम श्री, 2005 में पद्दम भूषण और साल 2007 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया है.

मन्ना डे का शुरूआती जीवन :

प्रबोध चन्द्र डे (मन्ना डे) का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था. कोलकाता से ही मन्ना डे ने अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी की और उसके बाद स्काटिस कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज के समय में मन्ना डे कुश्ती और मुक्केबाजी खेलो में भाग लेते थे. मन्ना डे के पिता उन्हें एक वकील बनाना चाहते थे जिस कारण उन्होंने उनका नाम विद्यासागर कॉलेज में लिखाया था.

बंगाल में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल फुटबाल है और मन्ना डे को भी फुटबाल खेलने का काफी शौक था. उसके बाद मन्ना डे संगीत के क्षेत्र में भी आने लगे थे. वे सोचते थे की कोन से क्षेत्र में जाया जाय, संगीत या फिर वकील के क्षेत्र में. मन्ना डे के चाचा भी एकगायक थे. फिर वही से मन्ना डे के अंदर चाचा की तरह संगीत की ओर झुकाव आ गया.

मन्ना डे के चाचा का नाम कृष्ण चन्द्र डे था. वही से मन्ना डे ने तय किया कि वे भी एक गायक ही बनेगें. मन्ना डे अपने संगीत के सपने को पूरा करने के लिए मुंबई आ गये और मुंबई के जुहू इलाके में रहने लगे थे.

मन्ना डे का व्यक्तिगत जीवन :

मन्ना डे की शादी 18 दिसम्बर साल 1953 को केरल (भारत) की रहने वाली सुलोचना कुमारन के साथ हुई थी. इस शादी से उनके 2 बच्चे हुए (दो बेटियां) शुरोमा और सुमिता है. मन्ना डे की पत्नी की मृत्यु 18 जनवरी 2012 को बंगलौर भारत में कैंसर के कारण हुई थी. मन्ना डे मुंबई में 50 साल तक रहे थे व उसके बाद बंगलौर चले गए थे और इसी शहर में मन्ना डे ने आखिरी साँस ली थी.

मन्ना डे की कुछ यादगार लम्हें :

साल 1943 में फिल्म तमन्ना में बतौर प्लेबैक सिंगर उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला था. यादगार बात यह थी इस फिल्म को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी देखा था. मन्ना डे केवल शब्दों को ही नहीं गाते थे बल्कि अपने गायन से शब्द के पीछे भाव को खूबसूरती से सामने लाते थे. शायद यही बात हैं कि महान कवि हरिवंशराय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिए मन्ना डे का चयन किया था.

मन्ना डे ने फिल्म आवारा में उनके द्वारा गाया गया गीत ” तेरे बिना चाँद ये चांदनी ” गीत काफी लोकप्रिय हुआ था. इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में गाने का अवसर मिलने लगा था जैसे ” प्यार हुआ इकरार हुआ ” ये फिल्म थी, श्री 420.

उसके बाद फिल्म चोरी-चोरी में गाया हुआ गीत ” ये रात भीगी-भीगी ” और ” जहाँ मै जाती हूँ वही चले आते हो ”, मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के ” जैसे अनेक सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी थीं. मन्ना डे को कठिन से कठिन गीतों को गाने का शौक था मन्ना डे के द्वारा गाये गीत लोगो में काफी लोकप्रिय हुए थे जो इस प्रकार हैं.

1. लागा चुनरी में दाग, छुपाऊँ कैसे
2. पूछो न कैसे मैंने रैन बितायी
3. सुर न सजे, क्या गाऊं मै
4. ये रात भीगी-भीगी, ये मस्त नजारे
5. तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीप कहूँ या तारा या तू प्यार का सागर हैं तेरी इक बूंद के प्यासे हम
6. चतुर नार बड़ी होशियार
7. यारी हैं ईमान मेरी यार मेरी जिंदगी
8. प्यार हुआ इकरार हुआ
9. हे मेरी जोहरा जबी
10. हे मेरे प्यारे वतन

इनके गीत आज भी लोगो के जुबांन पर चढ़े हुए हैं. उस समय किसी फिल्म निर्माता को अगर अपने फिल्म में कोई गीत गवाना होता तो वे मन्ना डे को ही साइन करता था. मन्ना डे कहते थे कि मैं संगीत के साथ कभी मजाक नहीं कर सकता हूँ.

” हम सभी उन्हें आज भी मन्ना दा के नाम से ही पुकारते हैं. शास्त्रीय गायकी में उनका कोई सनी ही नहीं हैं ” …………. महेंद्र कपूर

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मन्ना डे को सम्मान :

साल 1969 में फिल्म ” मेरे हुजुर ” के लिये सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक, साल 1971 में बंगला फिल्म निशि पदमा और साल 1970 में आयी फिल्म ” मेरा नाम जोकर ” में बेस्ट गायन के लिए फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित भी किया गया था. भारत सरकार ने उनके अतुलनीय योगदान के लिए साल 1971 में पद्दम श्री और साल 2005 में पद्दम भूषण पुरस्कार देकर सम्मानित किया था.

इसके बाद साल 2004 में रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया और साल 2007 में भारतीय हिंदी फिल्म उद्योग ने उन्हें सबसे बड़ा पुरस्कार ”दादा साहब फाल्के ” पुरस्कार से सम्मानित किया था.

मन्ना डे का निधन :

मन्ना डे को 8 जून साल 2013 में साइन संक्रमण के बाद बंगलौर के एक अस्पताल में भर्ती किया गया था और 9 जून 2013 को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गयी और 24 अक्टूबर 2013 को सुबह के वक्त उनका निधन हो गया था. उनके अंतिम समय में उनकी पुत्री और दामाद मौजूद थे.

मन्ना डे पर आत्मकथा :

मन्ना डे एक पार्श्व गायक तो थे ही साथ ही मन्ना डे ने बंगला भाषा में अपनी एक आत्मकथा लिखी थी. उसके बाद उनकी यह आत्मकथा अन्य भाषाओं छपी थी. बहुत से अन्य कवियों ने उनके जीवनी के बारे में काफी पुस्तकें भी लिखे थे, जो की इस प्रकार हैं :

* जिबोनेरे जलासोघरे (बंगला में), आनंदा प्रकाशन, कोलकाता पश्चिम बंगाल में प्रकाशित,
* मेमोरीज कम अलाइव (अंग्रेजी में)
* यादें जी उठी (हिंदी में)
* मन्ना डे (बंगला में मन्ना डे की एक जीवनी) अंजलि प्रकाशक, कोलकाता द्वारा प्रकाशित, लेखक डॉ गौतम राय.

आज भले ही मन्ना डे हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके संगीत को दिया गया योगदान आज भी हमें याद है. ऐसे महान हस्ती बहुत ही कम मिलते है और हमें गर्व है की उन्होंने हमारे देश में जन्म लिया.

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