जीवनानन्द दास
जीवनानंद दास (१७ फ़रवरी १८९९- २२ अक्तुबर १९५४) बोरिशाल (बांग्लादेश) में जन्मे बांग्ला के सबसे जनप्रिय रवीन्द्रोत्तर कवि हैं। उन्हें १९५५ में मरणोपरांत श्रेष्ठ कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] १९२६ में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, बनलता सेन, महापृथिबी, रूपसी बांगला आदि उनकी बहुचर्चित कृतियाँ हैं।
रबीन्द्रनाथके रुमानी कविता के प्रभावको अस्वीकार कर उनहोनें अपनाहि एक अलग काव्यभाषा का जन्म दिया जो पहले पाठक-समाज को गवारा नहीं था। परन्तु २०वीं सदी के शेष भाग से वह उभर कर आयें और पाठक के दिलोदिमाग को चा गये। पहले तो रबीन्द्रनाथ भी उनके काव्यभाषा के खिलाफ कटु आलोचना किये थे। उनके जीवनकाल में वह केवल २६९ कवितायें प्रकाश कर पाये थे जिसमें १६२ था उनके प्रकाशित संकलनों में। उनके मृत्यु के बाद उनके सारे अप्रकाशित कवितायें प्रकाश होने के पश्चात यह संख्या ८०० से भी ज्यादा हो चुका है। यंहा तक की उनके घर से १२ अप्रकाशित उपन्यास मिले जो अपने-आप में अभिनव था। इसके अलावे ३५ कहानियाँ भी मिलीं।
उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही दुखद था। १९५४ में जब एकदिन वह कोलकाता के ट्रामसे कुचले पाये गये तो लोगों का मानना था कि वह आत्महत्या कर लिये हैं।
कृतियाँ
काव्यग्रन्थ
- झरा पालोक (१९२७)
- धूसर पाण्दुलिपि (१९३६)
- वनलता सेन (१९४२)
- महापृथिबी (१९४४)
- सातटि तारार तिमिर (१९४८)
- श्रेष्ठो कविता (१९५४)
- रूपसी बांगल (१९५७)
- बेला अबेला कालबेला (१९६१)
- सुदर्शना (१९७३)
- आलो पृथिबी (१९८१)
- मानव बिहंगम (१९७९)
- अप्रकाशितो एकान्नो (१९९९)
- कवितासमग्र जीवनानंद। देबीप्रसाद बन्द्योपाध्याय सम्पादित (१९९३ एवम १९९९)
उपन्यास
- माल्यवान
- पूर्णीमा
- कल्याणी
- चारजोन
- बिभाव
- मृणाल
- निरूपमयात्रा
- कारुवासना
- जीवनप्रणाली
- विराज
- प्रेतिनीर
- सुतीर्थो
- बासमोतीर उपाख्यान
प्रबन्ध-निबन्ध-आलोचना
- प्रबन्धसमग्र जीवनानंद। फैजुल लतिफ सम्पादित।
- प्रकाशितो ओ अप्रकाशितो जीवनानंद। अबु हसन शहरियार सम्पादित